पैसिफ़ायर हिंदी मे जिसे हम चुसनी कहते है , हमेशा से ही बहस का विषय रहे है . इन सब बहस के बीच माता पिता बहुत कंफ्यूज हो जाते है और ये जानना चाहते हैं – क्या मुझे अपने बच्चे को पैसिफायर देना चाहिए?
पैरेंटिंग के ओर विषयों की तरह एक विषय जिस पर अक्सर बातचीत करी जाती है वह है -पैसिफ़ायर (Pacifier)। इसे सूथर, डमी या बिंकी के नाम से भी जाना जाता है,इस छोटे से पैसिफायर मे एक निप्पल,शील्ड और हैंडल होता है। ये सभी आपको अलग अलग भी मिल सकते हैं या इन्हें जोडकर एक सिन्गल पीस भी बनाया जा सकता है।
इससे पहले कि हम इससे जुडे विवादों के बारे में जाने , आइए पता लगाते है कि पेसिफायर क्यों इतने लोकप्रिय हैं।इसका मुख्य कारण है कि शिशु की चूसने की प्रवृति जिसे हम इंग्लिश में sucking reflex कहते है। बच्चे पैदा होने से पहले ही अपने अंगूठे या उंगलियों को चूसना शुरु कर देते हैं। इस रेफ़्लेक्स ( चूसने) का मुख्य कारण शिशु को फ़ीड देने की आवश्यकता है लेकिन शिशु सकिंग के दौरान राहत या आराम भी महसूस करते है. इसलिए जिन बच्चों का पेट भरा होता है वे फिर भी चूसने की प्रक्रिया मे संतुष्टि पाते है I पेसिफायर देने के पीछे मुख्य तर्क तो यही है फिर भी दुनिया भर मे माता-पिता इसे कई अलग-अलग कारणों से अपने बच्चों को देते हैं।
माता पिता द्वारा बच्चों को पेसिफायर देने के कारण
- जब भी वे चिडचिडे या ज़्यादा शोर या उधम मचाते हैं तब उन्हें शान्त या चुप करवाने के लिए पेसिफ़ायर दिया जाता है
- टीकाकरण, डॉक्टर के पास ले जाने या किसी अन्य या अनजान जगह पर जाने के कारण उन्हें आराम प्रदान करने के लिए
- बच्चे खुद से आसानी से सो सके इसिलिये
- पेट दर्द या एसिड रिफ़्लक्स से शिशुओं को राहत प्रदान करने के लिए
- हवाई यात्रा के दौरान असुविधा को दूर करने में बच्चों की मदद करने के लिए
- ब्रेस्ट फीड छुडवाने के लिए
- क्यों कि उन्हें लगता है कि पैसिफ़ायर की आदत छुडवाना अन्गूठा छुडवाने की आदत से आसान है
तो अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर आते है
क्या मुझे अपने बच्चे को पैसिफायर देना चाहिए?
पेरेंटिंग के बाकी सभी विषयों की तरह इस विषय पर भी एक से अधिक पक्ष है लेकिन अगर आप इस का उत्तर मुझ से एक शब्द मे पूछेगी तो मेरा उत्तर होगा – नहीं
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक डेंटिस्ट्री के अनुसार “लगातार पैसिफायर चूसने से उपर के सामने वाले दान्त होंठ की ओर टिप कर सकते हैं या ठीक से नहीं आ सकते हैं
. लंबे समय तक इसे चूसने से बच्चो के दान्तो की सरंचना या दाँतो की एक साथ काटने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और इसके साथ ही जबडे और
हड्डियों का विकास जो कि दान्तो को सहारा देती हैं उन्हे प्रभावित कर सकता है। “
ब्रिटिश डेंटल हेल्थ फाउंडेशन के अनुसार डमी यानि कि पैसिफ़ायर और अंगूठा चूसने की आदत से बच्चे को बचाया जाना चाइये। लंबे समय तक इन दोनों का उपयोग बच्चे के दांत के बढ़ने के साथ साथ उन्हें विकसित करने मे भी समस्या पैदा कर सकते हैं। और बच्चे के बडे होने पर उसका इलाज ब्रेस द्वारा ही करवाया जा सकता है।
पैसिफ़ायर चूसने से बच्चों को कोई पोषक तत्त्व नहीं मिलता साथ ही इससे उन्हें कुछ तकलीफें भी हो सकती है। जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं –
1.ये निप्पल भ्रम पैदा करता है – जब छोटे बच्चों को ब्रेस्टफ़ीडिंग के साथ साथ पैसिफ़ायर दे दिया जाता है तो ये निप्पल भ्रम पैदा कर सकता है। और इस कारण से माँ द्वारा की जाने वाली सभी कोशिशों के बावजूद भी बच्चा ब्रेस्ट फ़ीड लेने से मना कर देता है. इसी कारण माँ को ब्रेस्ट फ़ीड छुडवाकर बच्चे को फार्मूला मिल्क देना शुरु करना पड सकता है।
2.यह दूध की आपूर्ति को कम करता है– शुरूआती दिनों मे माँ को शिशु को ब्रेस्ट फ़ीड ही देनी चाहिए तभी उसी हिसाब से शरीर दूध का उत्पादन करता है लेकिन अगर आप बच्चे को पैसिफ़ायर देना शुरु कर देते है तो वो ज़्यादा फ़ीड नही ले पाता परिणाम सवरूप शरीर दूध की आपूर्ति कम हो जाती है ।
3.इससे फ़ीड जल्दी छूट जाती है – एक बार जब बच्चे ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं और ब्रेस्ट फ़ीड के अलावा अन्य स्रोतों से अपनी भूख को संतुष्ट करने में सक्षम हो जाये, तो उन्हें ब्रेस्ट फ़ीड की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वे पैसिफ़ायर चूस कर संतुष्ट रहते है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे नियमित रूप से पैसिफायर का उपयोग करते हैं,वे बार बार फ़ीड नहीं लेते है जिससे वे फ़ीड लेना जल्दी छोड देते है।
4.यह वजन बढ़ने से रोकता है -चाहे बच्चा ब्रेस्ट सक करे या पैसिफ़ायर दोनो मे ऊर्जा खत्म होती है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि जब बच्चा ब्रेस्ट सक करता है तो उसे ब्रेस्ट फ़ीड से कैलोरी या खोयी हुयी ऊर्जा वापिस मिल जाती है जब कि पैसिफ़ायर सक करने से ऊर्जा केवल खत्म ही होती है। ये बच्चो का वजन बढ़ने रोकता है खास कर उन बच्चो का जो सारा दिन पैसिफ़ायर सक करने के बाद फ़ीड नहीं लेना चाहते हैं।
5.इससे बार बार शिशु कीटाणुओं के सम्पर्क मे आता है – पैसीफायर बार-बार शिशुओं के मुंह से बाहर आ सकते हैं, जिसे वे फिर से अपने मुंह में डाल लेते हैं। इससे वे सभी प्रकार के कीटाणुओं के सम्पर्क मे आ सकते हैं । इसके अलावा, बड़े बच्चे पैसिफ़ायर के साथ खेल सकते हैं, जिससे ओर भी ज़्यादा कीटाणुओं के सम्पर्क में आने का खतरा रहता है ।
6.पैसिफ़ायर की लत या आदत पड सकती है – जिस तरह अन्गूठा चूसने की आदत बहुत मुश्किल से छूटती है ठीक उसी तरह पैसिफ़ायर की आदत छुडवाना बहुत मुश्किल है और वो भी तब जब शिशु सोने के लिए इस पर निर्भर है। ऐसी स्थिति मे अगर पैसिफ़ायर बच्चे के मुंह से बाहर आ जाये तो वह जाग सकता है और दोबारा इसे मुंह मे डालने के लिए रो भी सकता है .
7.इससे संक्रमण हो सकता है – पैसिफायर का उपयोग करने वाले शिशुओं में थ्रश जैसे फंगल संक्रमण होने की अधिक संभावना होती है, जो मां और बच्चे के बीच हो जाता है। इसके अलावा अध्ययनों से ये भी पता चला है कि जो बच्चे पैसिफ़ायर का नियमित इस्तेमाल करते है उन्हें मिडिल इयर संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है.
8.दान्त में होने वाली समस्याओं का कारण बन सकता है – पैसिफ़ायर का ज़्यादा लम्बे समय तक इस्तेमाल बच्चे के दांत और जबड़े के विकास को प्रभावित कर सकता है। इसे चूसते समय, जबड़े की हड्डी या जाबोन का आगे की और खिंचाव होता है और दान्तो की सरंचना पर गलत प्रभाव पडता है। अधिक गंभीर मामलों में, यह तालू के आकार को प्रभावित कर सकता है जिससे स्पीच प्रोब्लेम्स या बोलने की समस्या हो सकती है।
9.इससे सांस घुट सकती है – पैसिफ़ायर जो अलग अलग पार्ट्स से बने हुये होते है यदि इन्हें अलग कर दिया जाये तो इससे सांस घुटने का खतरा हो सकता है I यदि बच्चा पैसिफ़ायर को दाँतो से काटता है और किसी भी पीस को तोड लेता है तो ये गले मे फ़स सकता है। यदि आप पैसिफ़ायर ठीक दवाई के बाद दे रही है तो पैसिफ़ायर का मैटेरियल गल कर बच्चे के मुंह मे जा सकता है।
ऊपर दिए गये कारणों से पता चलता है कि क्यो शिशुओ को पैसिफ़ायर न देने की सलाह दी जाती है। लेकिन कुछ मामलो मे पैसिफ़ायर देना सही साबित हो सकता है। उदाहरण के तौर पर समय से पहले जन्मे बच्चों के लिए जो अपनी माओ से दूर होते हैं उनके लिये पैसिफ़ायर चूसना सही रहता है। हवाइ यात्रा करते समय बच्चो को कान मे प्रेशर या दवाब के कारण काफ़ी पीडा का अनुभव होता है और उस समय पैसिफ़ायर को चूसने से काफ़ी हद तक आराम मिलता है।
अंत मे ये माता पिता पर निर्भर करता है कि क्या बच्चे को पैसिफ़ायर दिया जाना चाहिए या नहीं। यदि आप इसे अपने बच्चे को देने का सोच रही है तो क्या करे और क्या नहीं ये सब आपके लिये जानना बहुत ज़रूरी है.
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क्या करे
- तब तक इंतजार करे जब तक बच्चे की ब्रेस्टफ़ीड लेने की एक रूटीन या दिनचर्या और मा के दूध की आपूर्ति न बन जाये I यह आमतौर पर 6-8 सप्ताह के आसपास होता है।
- इसे केवल फीडिंग के बीच ही दे की ताकि यह बच्चे की भूख को प्रभावित न करे।
- नैप टाइम और बेड टाइम के दौरान ही पैसिफ़ायर दे
- BPA फ़्री पैसिफ़ायर का इस्तेमाल करे
- हर 2-3 महीने में पेसिफायर बदलें
क्या न करे
- बच्चे के परेशान होने पर सीधा पैसिफ़ायर ना दे । पहले अन्य समाधान जैसे कि बच्चे को फ़ीड देना या झूला देना या घूमाना जैसे समाधान पहले आज़माएँ।
- जूस या अन्य मीठे पेय मे पैसिफ़ायर डिप न करे ये बच्चे के दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है
- ऐसे पैसिफ़ायर का इस्तेमाल न करे जिसमे दरार हो या टूटा हुआ हो
- बच्चे की गर्दन के आस पास पैसिफ़ायर न बाँधे ये घुटन का कारण बन सकता है
- अगर बच्चे का वजन सही से नहीं बढ रहा है तो इसे अपने बच्चे को न दे
यदि आप बच्चे को पैसिफ़ायर सिर्फ़ सक या चूसने के लिए देना चाहती है तो बेहतर है कि आप उसे फ़ीड ही दे। ब्रेस्ट सबसे अच्छा और नैचुरल पैसिफ़ायर है और इसके कोई दुश्प्रभाव भी नहीं है। ब्रेस्ट से ही मा और बच्चे के बीच बान्डिंग होती है न कि पैसिफ़ायर से।
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