आजकल इंटरनेट पर छोटे बच्चों को दूध छुड़ाने के संबंध में विभिन्न प्रकार की सलाह और सूचना दी जा रहीं हैं, लेकिन अधिकतर सुझाव और जानकारी शाकाहारी और सब्जियों से संबन्धित होते हैं। अब यदि आपका परिवार मांसाहारी भोजन पसंद करता है तो आपके मन में निश्चय ही यह प्रश्न उठ सकता है की “मैं अपने बच्चे को मांसाहारी भोजन कब दे सकती हूँ ”? आपने प्राणी स्त्रोत से मिलने वाले आयरन और विभिन्न प्रकार के लाभों के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन शायद आप संशय में हैं की क्या आपका छोटा बच्चा इस आहार को ठीक से पचा पाएगा या नहीं। आप निश्चिंत रहें, आपकी इस परेशानी का हल करने और आपकी सहायता करने के लिए हम यहाँ इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।
छोटे बच्चों को मांसाहारी भोजन क्यूँ देना चाहिए :
भारतीय संस्कृति में मांसाहारी भोजन की श्रेणी में अंडे, समुद्री खाना, मुर्ग संबंधी आहार को शामिल किया जाता है। बच्चों को अंडे देने संबंधी जानकारी हम पहले ही बच्चों के आहार सूची में दे चुके हैं, इसलिए इसके अतिरिक्त उपलब्ध मांसाहारी भोजन को शुरू करने संबंधी जानकारी यहाँ आपको दी जा रही है।
जब आपका पूरा परिवार मांसाहारी भोजन का आनंद लेता है तो आप चाहतीं हैं की आपका बच्चा भी इस आनंद का भागीदार बने। आपकी सोच बिलकुल सही है, न केवल यह बल्कि इसके अतिरिक्त बच्चों को मांसाहारी भोजन देने के अन्य लाभ हैं :
- शरीर के विकास के लिए ज़िंक और प्रोटीन बहुत जरूरी हैं और चिकन, मांस और मछ्ली इनके उत्तम स्त्रोत माने जाते हैं।
- लाल मांस में आयरन की विशेष श्रेणी हेम आयरन की काफी मात्रा होती है और यह शरीर में तुरंत ही घुल जाता है।
- मांसाहारी भोजन तुरंत पेट भरने वाला और संतोशदायी होता है इसलिए छोटे बच्चों को अधिक खाने और परिणामस्वरूप होने वाले मोटापे की संभावना कम हो जाती है।
नन्हें शिशु विशेषकर स्तनपान करने वाले बच्चों को मांसाहारी भोजन की शुरुआत करनी अधिक महतावपूर्ण हैं क्यूंकी जैसी ही वो ठोस आहार शुरू करते हैं तो उनके आयरन के स्त्रोत कम होने लगते हैं।
बच्चों को मांसाहारी भोजन कब दिया जा सकता है (Bache ko Nonveg khana):
अब आपके सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा है की “मैं अपने बच्चे को मांसाहारी भोजन की शुरुआत कब कर सकतीं हूँ”? अनेक विशेषज्ञों का मानना है की जैसे ही छोटे बच्चे अपना ठोस आहार लेना शुरू करते हैं तो इसका अर्थ है की उनका पाचन तंत्र भी मांसाहारी भोजन के लिए तैयार हो चुका है, बल्कि कुछ लोग तो इसे बच्चों के पहले भोजन के रूप में भी देने की सलाह देते हैं। लेकिन आपको सलाह यही दी जाती है की बच्चों का दूध छुड़ाने के लिए शाकाहारी भोजन से ही शुरुआत करनी चाहिए और जब आपका शिशु सात महीने की आयु का हो जाये तब ही उसे मांसाहारी भोजन से परिचित करवाना चाहिए।
जब आप अपने बच्चे का परिचय मांसाहारी भोजन से करवातीं हैं तो सबसे पहले मछ्ली (शैलफिश को छोड़कर)और मुर्ग भोजन से शुरू कर सकतीं हैं, क्यूंकी इस भोजन का स्वाद नरम होता है और इसके थोड़े समय बाद आप लाल मांस विशेषकर लैंब को देना शुरू कर सकतीं हैं। यह बात याद रखें , की सब कुछ एक साथ नहीं देना है विशेषकर उस स्थिति में तो बिलकुल नहीं जब आपके परिवार में किसी को इस भोजन से एलर्जी होती है। जब आपके द्वारा दिये गए इस भोजन को यदि आपका बच्चा किसी प्रकार से अस्वीकार कर देता है, यानि या तो मुंह से निकाल देता है या आपका हाथ हटा देता है तो उसके साथ ज़बरदस्ती न करें, बल्कि इंतज़ार करें और कुछ समय बाद देने का प्रयास करें। इस संबंध में आप यह भी कर सकतीं हैं की आप जो बच्चे के लिए विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ तैयार कर रहीं हैं , उसमें थोड़ा सा मांसाहार भी ले लें , इस प्रकार आपका शिशु नए स्वाद को आसानी से पहचान लेगा।
छोटे बच्चों को मांसाहारी भोजन की शुरुआत कैसे करें :
कुछ माँ यह महसूस करतीं हैं की उनके बच्चे शुरू में मांसाहारी भोजन के प्रति अरुचि दिखाते हैं, तो इस स्थिति में उन्हें स्वाद की पहचान करवाने के लिए पतला सूप दिया जा सकता है। इसमें थोड़ा सा आलू या गाजर डालने से बच्चा जाने पहचाने स्वाद को आसानी से स्वीकार करके मुसकुराता हुआ खा सकेगा।
इस प्रकार दिये गए तरीके से जब आपको लगे की अब आपके बच्चे ने मांसाहारी भोजन को स्वीकार कर लिया है तो अब आप प्युरी भी बना सकतीं हैं। नन्हें बच्चों के लिए मांसाहारी प्युरी खाने और पचाने, दोनों ही प्रकार से सरल होती है। प्युरी के रूप में मांसाहारी भोजन छोटे बच्चे सरलता से खा सकते हैं और किसी प्रकार से उनके गले में फँसने का डर नहीं होता है तथा सरलता से हजम भी हो जाता है। आप चाहें तो इस प्युरी में आप उबले आलू या सब्जियों का पानी भी मिला सकतीं हैं।
आप चाहें तो सब्जियों और मांस को अलग-अलग पकाकर एक साथ उसकी प्युरी बना लें या फिर दोनों को एक साथ पकाकर फिर प्युरी बना लें, जैसे आपको सुविधा हो, उस प्रकार पका लें। जड़ वाली सब्जियाँ इसमें अच्छी रहतीं हैं लेकिन आप चाहें तो सेब आदि अन्य फल भी इसमें मिला सकतीं हैं।
मांसाहारी भोजन में “कलेजी” या लिवर बच्चों के लिए अत्यंत पौष्टिक होती है क्यूंकी इसमें विटामिन ए की प्रचुर मात्रा होती है जो बच्चों की नेत्र ज्योति , रोग प्रतिरोधक क्षमता और अंगों के विकास में लाभकारी होती है। अगर आप चाहें तो हफ्ते में एक बार चिकन लिवर की थोड़ी सी मात्रा भी बच्चों को देना पर्याप्त होगा।
यह याद रखें की मांसाहारी भोजन, छोटे बच्चों के लिए एक पूर्ण आहार के रूप में होता है और इसके अंदर सभी ज़रूरी कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो सामान्य सब्जियों के माध्यम से लिए जा सकते हैं। शुरुआत में आप बच्चों को सप्ताह में दो बार ही मांसाहारी भोजन दे सकतीं हैं और कुछ समय बाद दिन में एक बार और अगर आपका बच्चा यह भोजन पसंद करता है तो आप दोपहर और रात के खाने में यह भोजन दे सकतीं हैं। यह भी ध्यान देने वाली बात है की बच्चों को दालों और सब्जियों से भी प्रोटीन मिलता है इसलिए यदि आप बच्चों को शाकाहारी प्रोटीन दे रहीं हैं तो मांसाहारी भोजन से परहेज कर सकतीं हैं।
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं और उनके दाँत निकल आते हैं, इस समय आप उनको दी जाने वाली मांसाहारी प्युरी की तरलता कम करके उसे थोड़ा गाढ़ा और थोड़ी कुतरने वाली बना सकतीं हैं। यदि आपका शिशु खाने को हाथ से पकड़ कर खा सकता है तो चिकन या मीट के छोटे-छोटे टुकड़े पका कर उसे खाने के लिए दे सकतीं हैं। याद रहें की यह टुकड़े इतने छोटे न हों की बच्चे के गले में फंस जाएँ ।
बच्चों को मांसाहार भोजन के संबंध में सामान्य टिप्स :
- छोटे बच्चों को डीप फ्रीजर में से निकला और माइक्रोवेव में गरम किया व पकाया मांसाहारी भोजन नहीं देना चाहिए। हमेशा गैस स्टोव पर अच्छी तरह से पकाया हुआ मांसाहारी भोजन ही छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त माना जाता है। पकाने से पहले उसे खुले पानी से अच्छी तरह से धो कर साफ कर लें जिससे किसी प्रकार की गंदगी के कण उसमें न रह जाएँ।
- नरम पकाया हुआ मीट हमेशा छोटे बच्चों के लिए खाना और हजम करना आसान होता है। इसलिए जब भी आप बहुत छोटे बच्चों को मांसाहारी भोजन से परिचय करवाना चाहतीं हैं तो उसे नर्म होने तक पकाएँ। इस प्रकार से पकाने के लिए या तो आप मीट पाउडर का इस्तेमाल कर सकतीं हैं या फिर कबाब बनाने वाली विधि के अनुसार दूध या दही में मेरिनेट भी कर सकतीं हैं।
- बच्चों को खाने के लिए मीट देते समय इस बात का ध्यान रखें की वो अच्छी तरह से पक गया है और उसकें अंदर कहीं भी कोई कच्चा भाग नहीं रह गया है। लेकिन इसके साथ यह भी ध्यान रखें की मीट जरूरत से अधिक न पक जाये, क्यूंकी वो फिर खाने में सख्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त यदि अगर संभव हो तो मीट को कोयले या धुएँ में न पकाएँ। जब छोटे बच्चों को मीट देना हो तो उसे रसे में या भाप में पका कर या उबाल कर ही दें।
- छोटे बच्चों को कभी भी रसायनयुक्त मीट जैसे सौसेज, हैम, सलामी आदि न दें। इनमें सोडियम और नाइट्रेट जैसे कार्कीनोगेन्स आदि की मात्रा काफी अधिक होती है। इसके अलावा नरम सौसेज का बच्चे के गले में अटकने का भी डर रहता है। जहां तक संभव हो छोटे बच्चों को चिकन और मुर्गी से संबंधी भोजन जैसे अंडे जो फार्म पर आसानी से उगाये जा सकते हैं। लेकिन इसमें भी केवल उन्हें अंडों को लें जिनके लिए किसी प्रकार के इंजेक्शन का प्रयोग नहीं किया गया हो।
- बच्चों को केवल घर में पका मांसाहारी भोजन ही दें। रेस्टुरेंट या होटल में बने मांसाहारी भोजन की शुद्धता और संग्रहण तथा पकाने की विधि की पूरी जानकारी न होने के कारण, बच्चों को किसी भी प्रकार के नुकसान होने की संभावना हो सकती है।
सावधानी :
- आपको इस बात का ध्यान रखना होगा की बेशक बच्चे का शरीर छह महीने के बाद मांसाहारी भोजन के लिए तैयार हो गया है लेकिन अभी भी उसकी किडनी पूरी तरह से परिपक्व नहीं हो पाई है जिससे वो प्रोटीन की अधिक मात्रा को आसानी से सम्हाल सके। इसलिए बच्चे को मांसाहारी भोजन केवल बताई गई मात्रा में और उसके भोजन के लिए निर्धारित समय पर ही दें।
- जब आप बच्चों को खाने के लिए लिवर दें तो थोड़ी मात्रा ही दें क्यूकी इसकी मात्रा अधिक देने से विटामिन ए टोकसीकेशन हो सकता है जिससे विटामिन डी के कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उसका हड्डियों पर भी बुरा प्रभाव होता है।
- अगर बच्चों को मीट अधिक मात्रा में दिया जाता है तो इससे उन्हें कब्ज होने की संभावना होती है। इसका मुख्य कारण यह है की बच्चों को फलों और सब्जियों से मिलने वाला फाइबर नहीं मिल पाता है। इसलिए छोटे बच्चों को मांसाहार धीरे-धीरे और कम मात्रा में ही शुरू करें।
- कुछ बच्चों को मीट से एलर्जी हो सकती है, इसलिए बच्चों को दिये जाने वाले सामान्य नियम को मांसाहारी भोजन पर भी लागू करना चाहिए।
तो आप देखिये, कुछ बच्चे तो मांसाहारी भोजन को तुरंत लेने के इच्छुक नहीं होते हैं लेकिन कुछ बच्चों के लिए यह मनपसंद भोजन तुरंत बन जाता है। किसी भी स्थिति में आप बच्चों के इशारों को समझ कर नियंत्रित मात्रा में ही उन्हें मांसाहारी भोजन से परिचय करवाएँ। आप देखेंगी की आपका बच्चा संतुलित आहार लेने की दिशा में तुरंत बढ़ रहा है।
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