बचपन से हम सबने फर्स्ट एड और फर्स्ट एड बॉक्स के बारे में तो जरूर सुना ही होगा। लेकिन वास्तव में जब तक इसकी जरूरत नहीं होती, हम इस शब्द के बारे में अधिक सोचते नहीं हैं।(bachon ke liye first aid tips ) अच्छा यह होगा की हम सबको फर्स्ट एड के बारे में जानकारी लेनी चाहिए। केवल तभी हम किसी दुर्घटना के समय, किसी भी व्यक्ति की जान बचा सकते हैं। यह शिक्षा और अधिक तब अनिवार्य हो जाती है जब आप एक नन्ही सी जान के माता-पिता होते हैं।
बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है नयी आदते नयी शरारते सीखता है । lलेकिन आँखों और हाथ-पैरों की गतिविधि में सामंजस्य नहीं होने के कारण उसे चोट लगने की सम्भावना ज्यादा रहती है । इसलिए हर माता पिता के लिए बहुत जरूरी है की उन्हें 10 फर्स्ट एड टिप्स पता होने चाहिए । क्यूंकि इन टिप्स की मदद से आप किसी भी स्थिति में बच्चे की मदद कर सकते हैं।
10 फर्स्ट एड टिप्स जो हर माता-पिता को पता होने चाहिए(bachon ke liye first aid tips)
बचपन हंसी खुशी के साथ ही हर पल किसी न किसी दुर्घटना की आशंका से युक्त होता है।(10 first aid tips) लेकिन तात्कालिक स्थिति में यदि आप धैर्य और सावधानी से काम लें, तो किसी भी नुकसान को रोक सकतीं हैं। बच्चों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं में इन 10 फर्स्ट एड टिप्स का इस्तेमाल आप कर सकतीं हैं:
-
छोटे बच्चों में चौकिंग (गले में किसी वस्तु के फस जाने की वजह से सांस लेने में दिक्कत होना :
नन्हें शिशु की शारीरिक संरचना बहुत नाज़ुक और छोटी होती है। इस कारण कभी भी दुर्घटना वश चौकिंग की समस्या आ सकती है। इस स्थिति से निबटने के लिए आपको हर समय अपने को तैयार रखना होगा। अगर कभी आपको इस स्थिति का सामना करना पड़े, तो घबराएँ नहीं। बच्चे की पीठ पर हल्के हाथ की थपकी उसके गले में फंसी चीज को बाहर निकाल सकती है। इससे बच्चे की सांस की नली की रुकावट भी दूर हो जाएगी और उसे सांस लेने में आसानी हो जाएगी।
इसके लिए आप अपनी बांह का सहारा देते हुए, बच्चे का मुंह नीचे करके उसे अपनी घुटने पर टिका दें। ध्यान रखें की उसके सिर को पूरा सहारा मिल रहा हो । इसके साथ ही सिर, शरीर के बाकि भाग से नीचे की ओर हो। अब थोड़ा हाथ हल्का रखते हुए लेकिन ज़ोर से उसकी पीठ पर हाथ लगाएँ। इससे बच्चे की सांस की नली की रुकावट दूर हो जाएगी।
-
बड़े बच्चों में चौकिंग:
थोड़े बड़े बच्चों के संबंध में चौकिंग की परेशानी होने पर उसे भिन्न तरीके से ठीक किया जा सकता है।फर्स्ट एड टिप्स में यह तरीका हेलमिच मानेवर कहलाता है। इसके अनुसार पेट पर हल्का सा दबाव दिया जा सकता है।
इसके लिए पहले बच्चे को कमर से पकड़ लें । अब अपने हाथ की मुट्टी का दबाव बच्चे की नाभि के ऊपर स्थान पर बनाएँ। अपने दूसरे हाथ का दबाव अपने उस हाथ पर बनाएँ जो आपने मुट्ठी बनाकर बच्चे के पेट पर रखा है। अब इस प्रकार करें जैसे आप बच्चे को ऊपर की ओर उठा रही हैं। यह प्रक्रिया कम से कम पाँच बार दोहराएँ । यह प्रक्रिया तब तक जारी रख सकतीं हैं जब तक या तो परेशानी दूर न हो जाये । किसी चिकित्सकीय मदद के मिलने तक भी इसे दोहराया जा सकता है।
-
सांस लेने में कठिनाई:
अक्सर देखा गया है की बच्चों को अचानक सांस लेने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में आप सीपीआर तकनीक का सहारा लेकर बच्चे को आराम दे सकतीं हैं। पीड़ित व्यक्ति के मुंह से मुंह जोड़कर सांस देने की क्रिया को सीपीआर तकनीक कहा जाता है।
सीपीआर देने के लिए बच्चे को पीठ के बल सीधा लिटा दें और अपनी हथेली को उसकी छाती पर रखें। ध्यान दें की आपका हाथ उसकी छाती के बिलकुल मध्य भाग में हो। अब अपने हाथ के हल्की दबाव से छाती को दबाएँ। लेकिन अधिक ज़ोर न लगाएँ जिससे पसलियों पर अधिक वजन न पड़े। एक बार दबाव देने के बाद छाती को अपने आप ऊपर आने दें। इसी प्रक्रिया को औसतन 30 बार दोहराएँ। इससे रुकी हुई सांस वापस आ सकती है। जब तक आपको सही मदद न मिले, यह तकनीक दोहराई भी जा सकती है।
-
नाक से खून आना:
जब बच्चे दस वर्ष से कम के होते हैं तो अधिकतर उनकी नाक से खून आता है। सामान्य रूप में यह अधिक गंभीर स्थिति नहीं होती है। वैसे नाक से खून आने के अनेक कारण हो सकते हैं। लेकिन इस परेशानी का हल केवल एक है। जब भी आपको लगे की बच्चे की नाक से खून आ रहा है, उसे एक कुर्सी पर सीधा बैठा दें और उसका सिर थोड़ा पीछे की ओर झुका दें। अब एक साफ और सूखे कपड़े से नाक के ऊपरी सिरे को कस कर पकड़ लें। ऐसा करने से नाक से खून आना बंद हो सकता है। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है तो बेहतर होगा की आप तुरंत डॉक्टर के पास जाएँ। अगर नाक से खून आने के साथ बच्चे को बेहोशी भी आ रही है या खून तेज़ी से आ रहा है तो तुरंत एमर्जेंसी अस्पताल में दिखाएँ।
-
जल जाना:
छोटे बच्चे अक्सर किसी न किसी कारण से जलने जैसे दुर्घटना के शिकार भी हो जाते हैं। यह दुर्घटना भी कई प्रकार की हो सकती है। लेकिन जब भी ऐसा हो, तो फर्स्ट एड के बाद तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। जैसे ही आपको लगे की बच्चे का कहीं कुछ जल गया है तो तुरंत प्रभावित भाग को ठंडे पानी के नीचे धो दें। ऐसा आप लगभग 15 मिनट तक कर सकतीं है। जब आपको लगे की अब जलन का एहसास कम हो रहा है तो प्रभावित घाव को हल्के हाथ से सूखे कपड़े से सुखा लें। इसके बाद जले पर लगाने वाली क्रीम लगा दें। यदि घाव पर कोई कपड़ा चिपक गया है तो उसे ऐसे ही रहने दें। यदि घाव चेहरे पर है या बिजली का करंट लगा है तो बिना देर करे अस्पताल जाएँ।
-
मोच आना:
कभी-कभी यह सुनिश्चित करना थोड़ा कठिन होता है की वास्तव में यह मोच है या फिर कोई अन्य गंभीर चोट जैसे फ्रेक्चर है। फ्रेक्चर होने की स्थिति में चोट वाली जगह पर असहनीय दर्द होता है। इसके साथ ही बच्चा शरीर का वह भाग हिलाने में असमर्थ होता है। लेकिन यदि मोच है तो प्रभावित जगह पर सूजन आ जाती है और वह हिस्सा हिलाने में कठिनाई होती है। इसलिए चोट लगने पर थोड़ी देर तक इंतज़ार करें। चोट वाली जगह को थोड़ी देर ऐसे ही रहने दें। अगर दर्द अभी भी बना है तो ठंडे पानी की सिकाई करें। यह काम 15-20 मिनट तक करें। इसके बाद अब प्रभावित जगह को हिला कर देखें। यदि अभी भी दर्द कम नहीं हुआ है तो आप डॉक्टर की सलाह लें।
-
गहरा कट जाना :
बच्चों के खेलते समय थोड़ा बहुत आमतौर पर कट जाना एक सामान्य बात है। ऐसा होने पर केवल उस जगह को धो कर सुखा लें। इससे अधिक इलाज की उसमें आवशयकता नहीं होती है। लेकिन यदि कटने का घाव गहरा है और खून अधिक आ रहा है तो उसे अनदेखा न करें। (10 first aid tips)घाव के गहरा होने की स्थिति में उसे सावधानी से पानी से साफ करके पहले सुखा लें और फिर स्टार्लाइज़ पट्टी से उसे ढ़क दें।
चोट वाले हिस्से को इतना ऊपर उठा लें की वो हृदय से ऊपर हो जाये और उस भाग को कस कर पकड़ लें। यह काम आप 5 मिनट तक करें। अब तक अगर खून बहना बंद हो जाता है तो इसकी अच्छी तरह से बैंडेज से बांध दें और उसपर टेप लगा दें। यदि पट्टी की एक सतह पर खून आ जाता है तो उसपर दूसरी पट्टी लगा दें। लेकिन यदि फिर भी खून नहीं रुकता है तो आप डॉक्टर के पास जाने तक घाव को कस कर पकड़े रहें जिससे खून को अधिक बहने से रोका जा सके।
-
दौरा पड़ना:
कई बार देखा गया है की बहुत से माता-पिता दौरे के बारे में अधिक नहीं जानते हैं । इसी कारण वो बच्चे के दौरे की परेशानी को समझने में भूल कर देते हैं। वैसे तो दौरे पड़ने के अनेक निशानियाँ होती हैं, लेकिन कुछ सामान्य होती हैं। जैसे हाथ और पैरों का अपने आप मुड़ जाना या चलने लगना, शरीर का ऐंठना तो आम लक्षण हैं। इसके अतिरिक्त बेहोशी का आना, अपने आप ही मूत्र या मल का त्याग करना आदि लक्षण हो सकते हैं। (10 first aid tips)दौरे की अवधि कुछ मिनट की हो सकती है और हो सकता है की आपको देखनी असहनीय भी हो।
लेकिन यदि आपको यह या इनमें से कोई भी लक्षण दिखाए देते हैं तो बिना घबराए आप बच्चे को सम्हालें। सबसे पहले तो बच्चे को समतल सतह जैसे बैड या फर्श पर करवट से लिटा दें। इसके बाद उसके कपड़े ढीले करके उसके गले में कोई माला और उँगलियों में अंगूठी है तो वो भी हटा दें। इस बीच में यदि बच्चे ने वमन कर दिया है तो एक साफ कपड़े से और अपने हाथों से उसका मुंह साफ कर दें। इस बात का खास ध्यान रखें की वह करवट से लेटा रहे। जब दौरा खत्म हो जाये और बच्चा थोड़ा शांत हो जाये तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएँ और सारे लक्षण विस्तार से बताएं। यह बाद आप ध्यान रखें की अगर दौरा 5 मिनट से अधिक की अवधि का हो जाये तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएँ।
-
नाक या कान में कुछ डाल लेना:
छोटे बच्चे अक्सर खेलते हुए अपनी नाक या कान में कुछ भी डाल लेते हैं।ऐसा होने पर अपनी उंगली या हाथ से उसे निकालने की कोशिश न करें। बच्चे अगर किशोर हैं तो आप चीज निकालने के लिए चिमटी का उपयोग कर सकतीं हैं। एक और उपाय के रूप में आप बच्चे की नाक के छेदों को कस कर पकड़ लें। अब बच्चे को नाक से ज़ोर की हवा बाहर फेंकने को कहें। अक्सर ऐसा करने पर नाक में फंसी चीज बाहर आ जाती है। (10 first aid tips)लेकिन अगर बच्चा बहुत छोटा है तो ऐसा कुछ भी करने का प्रयास न करें। उसे तुरंत अस्पताल के एमर्जेंसी विभाग में ले जाएँ।
यदि कान में कुछ फंस गया है और आप उसे बाहर से साफ तौर पर देख सकतीं हैं तो चिमटी की सहायता से बाहर खींच लें। यदि कान में कोई कीड़ा चला गया है तो बेबी ऑइल की कुछ बूंदें कान में डाल दें, कीड़ा अपने आप बाहर आ जाएगा। ऐसा कुछ भी न होने पर आप डॉक्टर के पास चले जाएँ।
-
लू लगना:
जैसा की आप जानते हैं की बच्चों को, एक वयस्क व्यक्ति की तुलना में लू जल्दी लगती है। अधिकतर लू लगने पर त्वचा का लाल होना, थकान होना, अधिक प्यास लगना और तेज साँसे आम लक्षण होते हैं। (10 first aid tips)आमतौर पर इनमें से किसी भी लक्षण पर डॉक्टर की ज़रूरत नहीं होती है। लेकिन यदि इन लक्षणों के साथ बेहोशी आना, अत्यधिक थकान होना, चक्कर आना भी हो तो स्थिति गंभीर होती है। सिर में तेज दर्द होना या कमजोरी महसूस होना भी शामिल होने पर लू की तीव्रता अधिक मानी जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे को तुरंत किसी ठंडी जगह पर लिटा दें। इसके साथ ही उसके कपड़े ढीले कर दें और उसे पानी खूब पिलाएँ। हो सकते तो पानी में नमक और चीनी का घोल बना कर दें। इसके अतिरिक्त आप नारियल पानी या इलेक्ट्रोल भी पिला सकतीं हैं।
लेकिन यदि आपका बच्चा बहुत छोटा है और उसकी सांस तेज़ चल रही है या उसे बेहोशी आ रही है तो देर न करें। तुरंत डॉक्टर के पास जाएँ।
10 फर्स्ट एड टिप्स (10 first aid tips)के लिए बेसिक फर्स्ट एड किट कैसे बनाएँ:
एक सामान्य घर में बेसिक फर्स्ट एड किट ज़रूर होनी चाहिए। उसे बनाने के लिए आपको जिन चीजों की ज़रूरत होगी, वो इस प्रकार हैं:
- बैंड एड
- स्टार्लाइज़ गौज़
- बैंडेज
- एंटीसेप्टिक
- जले पर लगानी वाली क्रीम
- एंटीबीओटिक ओइंटमेंट
- बुखार की दवा
- सादी दवा
- पेट संबंधी दवा
- कैलेमाइन लोशन
- थर्मामीटर
- चिमटी
- गर्म/ठंडे पानी की बोतल (सिकाई करने के लिए)
- कैंची
- स्टर्लाइल टेप
वैसे तो यह सभी आम वस्तुएँ हैं जो आपके फर्स्ट एड बॉक्स में होनी चाहिएँ। लेकिन हो सकता है की आपके परिवार में किसी विशेष दवा की जरूरत आकस्मिक रूप से हो। तो इस स्थिति में आप उसे भी इसके साथ जरूर रखें। जब आपके घर में नवजात शिशु हो तो अपने फर्स्ट एड बॉक्स में कुछ अलग वस्तुएँ भी रखें। इनमें नाक में डालने वाली दवा और बच्चों वाला थर्मामीटर भी ज़रूर रखें। एक बार(10 first aid tips )किट बनाने के बाद उसे समय-समय पर देखतीं रहें । ज़रूरत के अनुसार जब कुछ कम हो तो उसे पूरा कर दें। जिन दवाइयों की एक्स्पायरी हो गई हो उन्हें फेंक कर नयी रख लें।
एक छोटे बच्चे के माँ होने के नाते आपको हर परिस्थिति में अपना धैर्य बना कर रखना होगा। अपने धैर्य और हिम्मत से इस फर्स्ट एड बॉक्स का इस्तेमाल आप ज़रूरत पड़ने पर कर सकतीं हैं। यह बहुत अच्छा होगा, अगर इस जानकारी को आप अपनी सखियों को भी बताएं।
उम्मीद है आपको यह लेख और जानकारी पसंद आई होगी, ऐसी ही और पालन पोषण संबंधी अधिक जानकारी के लिए हमसे फेसबुक पर जुड़ें
प्रातिक्रिया दे